अब रोता क्यों है... तनहा शायर हूँ अब रोता क्यों है... तनहा शायर हूँ
तेरे संग चली चारों तरफ अग्नि के, संग तेरे अपना घर छोड़ कर आई हूं, फिर भी मैं पराई हू तेरे संग चली चारों तरफ अग्नि के, संग तेरे अपना घर छोड़ कर आई हूं, फिर...
बस मेरा नाम गाँव है। अब मैं गाँव नहीं हूँ। शहर का पिद्दी सा पिछलग्गू हूँ। बस मेरा नाम गाँव है। अब मैं गाँव नहीं हूँ। शहर का पिद्दी सा पिछलग्गू हूँ।
आज तू मयस्सर नहीं मेरे रूबरू तनहा शायर हूँ आज तू मयस्सर नहीं मेरे रूबरू तनहा शायर हूँ
क्यों नींद नहीं आती- तनहा शायर हु क्यों नींद नहीं आती- तनहा शायर हु